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भक्ति कार्य में विष मत घोलिये.

विमर्यांजलि
विमर्यांजलि
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वसंत पंचमी में अब बस गिने चुने दिन ही बाकि रह गये है.हर जगह सरस्वती पुजा कि तैयारी जोर शोर से चल रही है.इसमें ख़ास कर युवा वर्ग काफी उत्साहित नजर आताहै.और बढ चढ कर हिस्सेदारी करता है.लेकिन किसी ने सही कहा है कि हद से ज्यादा उत्साह भी सही नही होता.कुछ ऐसा ही हाल हमारे युवा वर्ग का है, और इस युवा वर्ग मे भी एक खास समूह के लोगो का जिनका वास्तव में पढ़ाई से कोई लेना देना नही होता है.ये तो बस मोज के लिए सरस्वती पूजा का आयोजन करते है.ये अभी आपको कही भी सडक पर हाथ में डंडा लिए गाड़ियो को रोक कर चंदे मांगते नजर आ जाएंगे.इन कामो मे इनकी उत्सुकता देखते ही बनती है.चंदा न मिलने पर ये लडाई तक कर देते है. लेकिन दुख कि बात तो यह है कि इतनी शिद्दत और मेहनत से हासिल किये गये, इस चंदे के पैसे का एक फीसदी हिस्सा भी सही तरिके से उपयोग नहीँ होता है. ये लोग पूजा के नाम पर हुड़दंगबाजी करते है.ये हुड़दंगबाजी बस उतने ही देर बंद रहती है, जितने देर पूजा का विधान अथवा आरती होती है. इसके बाद तो डीजे के अश्लील गाने पर का दौर चलता है.भक्ति गानो का आयोजन बडा शांत और फीका सा लगता है,पुजा शांति और फीकेपन से खत्म हो जाए भला ये किसे पसंद है.कम से कम आज के इन युवाओ को तो बिल्कुल नही.सो,इस फिकेपन को मिटाने के लिये अश्लील गाने बजाये जाते है. मूर्ति विसर्जन में तो हुड़दंगबाजी और भी बढ जातीहै. 
ऐसी पुजा और पुजा करने वालो पर तो बरबस ही मन में सवाल उठ जाते है की आखिर ये कैसी पुजा है? ये विद्या की देवी की अराधना का विषय है, इस समय कुछ ऐसे कार्य किये जाने चाहिये जिससे समाज में कोई अच्छा संदेश जाये. जीवन में शिक्षा और विद्या का क्या महत्व है, इसके प्रति लोग जागरुक हो सके. इस पुजा का असली उद्देश्य तो तब पुरा होगा जब घर-घर में शिक्षा की अलख जगेगी. यह पुजा श्रद्धा भाव का विषय है,हुड़दंगबाजी या हुल्लड़बाजी का नही.इस पवित्र कार्य को पवित्र ही रहने दिजिये. भक्ति कार्य को विषैला मत बनाईये.सरस्वती पुजा के असल मकसद को गंदा मत किजिये. दरअसल यह पुजा इसलिये शुरू की गयी थी की छात्रो या इसको करने वालों में बुद्धि- विवेक आए पर इसके आयोजन में यह बात अब नही मिलती.
•विवेकानंद विमल

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